गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

pehla kadam

यह मेरा यहाँ ,प्रथम आगमन है, और मै मेरे पहले कदम के  साथ ही ,आप के समक्ष अपने अंतरिम भावों का गुलदस्ता लेकर आयीं हूँ. कदाचित मन मोहे , तो स्वीकार करे.
                                     संवाद 
शब्दों के उत्पात को आओ संभाले, मौन के कुछ तीर तरकश से निकाले.
साधना का धनुष  प्रत्यंचा समय की, निमिष में ही लक्ष्य की निजता चुरा ले..

बोल बोलों में उतर जो बोल देंगे, नाद वे अन्तरिक्ष में श्रुति खोल देंगे.
तीर पलटेंगे नहीं वे ईर्ष्या के , जो पिनाकों से निकल गुण छोड़  देंगे..

स्रोत है प्रारब्ध का जीवन उद्वेलित, निर्झरो सा हस्तरेखा बन बहा है..
तरंगित सी उर्मियाँ ज्यू भाल लिखती, वर्ण रीते शून्य जल  मानस रहा है..

स्तब्धता में चेतना मृत हो न जाए, सजगता हो आग में घृत हो न जाए..
भंवर निर्मित हो रहे जीवन असीमित, धैर्य की पतवार दृढ त्रण हो न जाए..

नेत्र दर्पण पर यवनिका है गिराई, बिम्ब और प्रतिबिम्ब  की  आभा मिटाई..
तू रहे तुझ में मेरा अस्तित्व मुझमें, वाद और प्रतिवाद की अग्नि बुझाई..

शब्दों पर हों शब्द-भेदी शब्द-हीना ,तीर वे तुणीर में ऐसे संभालो.
वार-प्रत्यावर हो ज्यू अग्नि-हिम का, मेघ बरसे बिजलियाँ दृग में छुपा लो..

वायु ही है स्वांस और है आँधिया भी, नीर ही है प्राण और सुनामियां भी.
शब्दों की लय बहे निर्मल धार बन कर, ज्योति से हो होम और दिवालियाँ भी..